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Wednesday, 7 July 2021

Every True Indian Must salute Dr Shyama Prashad Mukherjee whose birth anniversary was yesterday 6th July

Every True Indian Must salute Dr Shyama Prashad Mukherjee whose  birth anniversary was  yesterday 6th July after reading this brief story of his supreme sacrifice which has finally resulted in revocation of Article 370 from Kashmir by Modi Govt
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नमन , नमन , नमन 🙏🙏🙏
देश के सही सपूत को ,नमन 🙏

रावी नदी के उपर बना हुआ पुल पंजाब और जम्मू कश्मीर राज्य को जोड़ता है। हजारों सवारी गाड़ियाँ , हजारों लोग रोजाना गुजरते हैं उस पुल के उपर से होकर... बिना किसी परमिट के , बिना किसी अनुमति पत्र के। 

परंतु बात उन दिनों की है जब जम्मू कश्मीर राज्य में प्रवेश करने के लिए परमिट लेना अनिवार्य था।
ऐसे में माँ भारती का एक सपूत डाॅ श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने परमिट व्यवस्था को समाप्त कराने का प्रण लिया था।

उन्होंने नेहरू जी से एक सवाल किया था -- "जब आप कहते हो कि जम्मू कश्मीर का भारत में 100% विलय हो चुका है तो फिर ये परमिट क्यों ? "

नेहरू निरूत्तर हो गये थे.......

इसके पहले मुखर्जी ने एक सभा में सिंह गर्जना करते हुए कहा था -- " जम्मू काश्मीर में एक निशान , एक विधान और एक प्रधान होना चाहिए , और इसे लागू करवाने के लिए यदि मेरे प्राण भी चले जाए तो मैं सहर्ष तैयार हूँ। "

मई 1953 में परमिट व्यवस्था के खिलाफ राज्य में बिना परमिट लिए प्रवेश करने का उन्होंने निर्णय किया।

8 मई को वे दिल्ली से एक पैसेंजर ट्रेन से माधोपुर (पंजाब) के लिए निकले , रास्ते में ट्रेन जहाँ भी रूकती हजारों की संख्या में लोग उस योद्धा के दर्शन के लिए आते ।

... माधोपुर में बीस हजार लोग उनके स्वागत के लिए खड़े थे । उन्हें संबोधित करने के बाद वे कुछ साथियों के साथ आगे बढ़े।

जैसे ही रावी के पुल के आधे हिस्से को पार किया पुलिस ने उनसे कहा -- " मि. मुखर्जी , यू आर अंडर अरेस्ट ,,, आप काश्मीर में बिना परमिट के नहीं जा सकते हैं।"
मुखर्जी साहब ने मुस्कराते हुए अटल जी की तरफ देखा और कहा - " गो एंड टेल द पिपल आॅफ इंडिया आई हैव एंटर्ड जम्मू एंड काश्मीर"

अटल जी की आँखें नम थी।

मुखर्जी साहब ने हाथ में लिए तिरंगे को जेब में डाला और दूसरा हाथ अटल जी के कंधे पर रखते हुए कहा - " मेरे साथ यह तिरंगा भी बिना परमिट के काश्मीर जा रहा है ... जाओ यह खुशखबरी लोगों को दे देना।"
मुखर्जी साहब को गिरफ्तार करके काश्मीर ले जाया गया , एक छोटे से कमरे में कैद करके रखा गया ...जहाँ बुनियादी सुविधाओं का नितांत अभाव था। 
चालीस दिनों के बाद जून 1953 में देश के इस महान सपूत ने संदेहास्पद परिस्थितियों में अपने नश्वर शरीर का त्याग कर दिया।

मुखर्जी साहब का यूँ चले जाना किसी को समझ में नहीं आया था... सारा राष्ट्र शोक संतप्त हो गया था।
उस समय अखबारों में एक आलेख छपा था जिसका शीर्षक था -- " वह सफेद पुड़िया क्या थी " ??

डॉ मुखर्जी की बेटी सबिता मुखर्जी अपने पति के साथ उस स्थान पर गई जहाँ एक जेलनुमा कमरे में मुखर्जी साहब को रखा गया था। 

वहाँ सबिता की मुलाकात एक पंजाबी हिन्दू नर्स से हुई जो उस समय ड्यूटी पर थी।

उसने बताया था कि एक डॉक्टर ने उससे कहा था कि यदि इनका दर्द , इंजेक्शन से ठीक ना हो तो यह पुड़िया दे देना। 
इतना कहते ही वो नर्स रोने लगी और आगे कहा कि -- " मैंने दी ..और फिर मुखर्जी साहब हमेशा के लिए सो गये "।
डॉ मुखर्जी ने देश की खातिर अपना बलिदान दे दिया था ...परमिट व्यवस्था खत्म हो चुकी थी ...तिरंगा काश्मीर पहुँच चुका था।

आज 6 जुलाई है , डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जन्मदिन है।

जनसंघ के संस्थापक डॉ मुखर्जी 1901 में पैदा हुए थे.... और 1953 में उन्होंने अपना बलिदान दिया था। 

माँ भारती के इस सपूत के जन्मदिन के अवसर पर मैं उन्हें बारम्बार नमन करता हूँ।

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