Prime Minister's Office
Text of PM’s address at the launch of Indian Post Payments Bank at Talkatora Stadium in Delhi
Posted On:
01 SEP 2018 10:53PM by PIB Delhi
मंच पर विराजमान मंत्रिपरिषद के मेरे सहयोगी, श्रीमान मनोज सिन्हा जी, इंडिया पोस्ट पेमेन्ट्स बैंक के सीईओ, सेक्रेटरी पोस्ट IPPB के तमाम साथी यहां उपस्थित अन्य सभी महानुभाव, देवी
और सज्जनों। इस समय टेक्नोलॉजी के माध्यम से देशभर के तीन हजार से अधिक
सेंटर पर पोस्टल विभाग के हजारों कर्मचारी और अन्य भी वहां के नागरिक और
जैसा हमारे मनोज जी ने बताया करीब 20लाख लोग इस समय इस कार्यक्रम के साथ जुड़े हुए हैं। वहां कई राज्यपाल महोदय, मुख्यमंत्री महोदय, केंद्र के मंत्रिपरिषद के हमारे साथी, राज्य के मंत्रिगण, सांसदगण, विधायकगण, ये सब भी वहां मौजूद हैं, मैं उन सबका भी इस समारोह में स्वागत करता हूं और इस महत्वपूर्ण अवसर पर उन सबका भी मैं अभिनंदन करता हूं।
हमारे मंत्री श्रीमान मनोज सिन्हा जी IITian हैं और आईआईटी में पढ़े-लिखे होने के कारण वो स्वभाव से हर चीज़ में टेक्नोलॉजी जोड़ देते हैं और इसलिए यह समारोह भी टेक्नोलॉजी से भरपूर है और साथ-साथ यह initiative भी टेक्नोलॉजी वाला है। और मनोज जी ने व्यक्तिगत रूचि ले करके इस काम को आगे बढ़ाया। उनका अपना टेक्नोलॉजी का background होने के कारण बहुत ही उत्तम प्रकार के उनके input मिले और उसका नतीजा है कि आज देश को एक बहुत बड़ा नजराना मिल रहा है। और आज 01 सितंबर, देश के इतिहास में एक नई और अभूतपूर्व व्यवस्था की शुरूआत होने के नाते याद किया जाएगा।
इंडिया पोस्ट पेमेन्ट्स बैंक के माध्यम से देश के हर गरीब, सामान्य मानव तक देश के कौने-कौने तक, दूर-दराज के पहाड़ों पर बसे लोगों तक, घने जंगलों में रहने वाले हमारे आदिवासियों तक, दूर किसी द्वीप में रहने वाले उन समूहों तक यानि एक-एक भारतीय के दरवाजे पर बैंक और बैंकिंग सुविधा पहुंचाने का जो हमारा संकल्प है, एक प्रकार से आज वो मार्ग इस प्रारंभ से खुल गया है। इस नई व्यवस्था के लिए मैं सभी देशवासियों को बहुत-बहुत बधाई देता हूं।
भाइयों-बहनों, इंडिया
पोस्ट पेमेन्ट्स बैंक देश के अर्थतंत्र में सामाजिक व्यवस्था में एक
बड़ा परिवर्तन करने जा रहा है। हमारी सरकार ने पहले जनधन के माध्यम से
करोड़ों गरीब परिवारों को पहली बार बैंक तक पहुंचाया और आज इस initiative से हम बैंक को, गांव और गरीब के दरवाजें तक पहुंचाने का काम आरंभ कर रहे हैं। आपका बैंक आपके द्वार यह सिर्फ एक घोष वाक्य नहीं है, यह हमारा commitment है, हमारा
सपना है। इस सपने को साकार करने के लिए लगातार एक के बाद एक कदम उठाये जा
रहे हैं। देशभर के साढ़े छह सौ जिलों में आज इंडिया पोस्ट पेमेन्ट्स बैंक
की शाखाएं प्रारंभ हो रही हैं और हमारी चिट्ठियां लेना वाला डाकिया अब चलता-फिरता बैंक भी बन गया है।
अभी जब मैं आ रहा था तो मैंने यहां एक प्रदर्शनी देखी, क्या व्यवस्था हो रही है, कैसे काम होना है, इस
बारे में विस्तार से मुझे बताया गया और हो सकता कि वो आपने भी स्क्रीन
पर देखा होगा। और जब मैं इसे देख रहा था वहां जो विशेषज्ञ थे जो मुझे इस
सारी योजना को समझा रहे थे और तब एक विश्वास, मेरे भीतर एक आत्म संतोष का भाव जग रहा था कि ऐसे साथियों के साथ रह करके उनकी कर्तव्य निष्ठा, उनका
यह प्रयास जरूर नया रंग लाएगा। और मुझे याद है कि एक जमाना था और डाकिये
के संबंध में मैं समझता हूं कि हमारे यहां बहुत सारी बातें कही जाती हैं । सरकारों के प्रति विश्वास कभी डगमगाया होगा, लेकिन डाकिये के प्रति कभी विश्वास नहीं डगमगाया। बहुत कम लोगों को मालूम होगा, जो
लोग ग्रामीण जीवन से परिचित होंगे उनको पता होगा कि दशकों पहले डाकिया जब
एक गांव से दूसरे गांव जाता था तो उसके हाथ में एक भाला रहता था, भाले पर एक घुंघरू बंधा रहता था, और वो चलता था तो घुंघरू की आवाज आती थी। एक गांव से जब दूसरे गांव जब डाकिया जाता था और घुंघरू की आवाज आती थी, तो वो इलाका कितना ही घना हो, कितना ही दुर्गम हो, कितना ही संकटों से भरा हो, डकैत हो, आते हो-जाते हो, चोर-लूटेरें रहते हो, लेकिन जब घुंघरू की आवाज आती थी कि डाकिया है, कोई चोर-लूटेरा उनको परेशान नहीं करता था। उन चोर-लूटेरों को भी पता था कि डाकिया किसी गरीब मां के लिए मनी ऑर्डर ले करके जा रहा है।
आपको मालूम होगा, अभी तो हर घर में कौने में घड़ी पड़ी होगी, लेकिन पहले गांव में शायद एक-आध टावर हो तो घड़ी होती थी, वरना
घड़ी कहां होती थी। और मैं वो जिंदगी जी करके आया हूं तो मुझे मालूम है कि
जो बुजुर्ग लोग अपने घर के बाहर बैठे रहते थे और जरूर पूछते थे- डाकिया आ गया क्या? शायद कोई बुजुर्ग ऐसा नहीं होगा जो दिन में दो-चार बार पूछता नहीं हो, कि डाकिया आ गया क्?लोगों को लगता होगा कि क्या उनकी कोई डाक आने वाले है, डाक तो आती नहीं, लेकिन वो डाक के लिए नहीं पूछता था उसे मालूम था कि डाकिया आ गया मतलब घड़ी में इतना टाइम हुआ होगा, यानी समय की पाबंदी| डाकिया आया या नहीं आया इसके आधार पर हमारी समाज व्यवस्था में तय होती थी और इसलिए एक प्रकार से डाकिया हर परिवार से एक emotional connect चिट्ठियों से जुड़ा होता था, और इसलिए डाकिये को भी समाज में एक विशेष स्वीकार्यता और सम्मान प्राप् था।
आज के इस युग में टेक्नोलॉजी ने बहुत कुछ बदल दिया है, लेकिन चिट्ठियों को ले करके डाकिया जो भावना, जो विश्वसनीयता पहली थी आज भी वैसी ही है। डाकिया और पोस्ट ऑफिस एक प्रकार से हमारे जीवन का, हमारे समाज का, हमारी फिल्मों का, हमारे साहित्य का, हमारी लोक कथाओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है। हम सभी ने अभी जो advertisement दिखा रहे थे - 'डाकिया डाक लाया',ऐसे गीत दशकों तक लोगों को अपने जीवन का हिस्सा लगते रहे हैं। अब आज से डाकिया डाक लाया के साथ-साथ डाकिया बैंक भी लाया है।
दशकों पहले मैं एक बार कनाडा गया था, तो मुझे कनाडा में एक फिल्म देखने को मिली थी, मुझे आज भी याद है, उस फिल्म का नाम था AirMail और सचमुच में रोंगटें खड़े कर देने वाली फिल्म है, डाक के ऊपर है| और हमारे जीवन में अपनों की चिट्ठियों का जो महत्व है वो इस फिल्म की कहानी का आधार था। फिल्म में एक हवाई जहाज था, जिसमें चिट्ठियां जा रही थी लेकिन वो दुर्भाग्य से crash हो गया, इस हादसे के बाद जो हवाई जहाज crash हुआ था, उसमें जो चिट्ठियां थी, उसको बटोर करके उन लोगों तक पहुंचाने की पूरी कथा उस movie में है। किस प्रकार से उन चिट्ठियों का जतन किया गया था और ऐसे जैसे किसी व्यक्ति के जीवन को बचाने के लिए कोशिश हो रही है, वैसी कोशिश डाकिये उन चिट्ठियों को बचाने के लिए कर रहे थे। हो सकता है शायद आज भी youtube पर यह movie हो तो आप जरूर देखिएगा। और उन पत्रों में कितनों का दुलार था, संदेश था, चिंता थी, शिकायतें
थी। चिट्ठियों में आत्मीयता ही उसकी आत्मा होता है। आज भी मुझे सैकड़ों
की संख्या में हर रोज चिट्ठियां मिलती है। पोस्ट विभाग का भी काम बढ़ गया
है, मैं जब से आया हूं। कोई चिट्ठी तब लिखता है न जब उसको भरोसा हो। और मेरा जो मन की बात का कार्यक्रम होता है, उसको
ले करके भी हर महीने हजारों चिट्ठियां आती है। यह पत्र लोगों के साथ मेरा
सीधा संवाद स्थापित करते हैं। जब वो चिट्ठियां पढ़ता हूं, तो लगता है कि लिखने वाला सामने ही है, अपनी बात सीधे ही मुझे कह रहा है।
साथियों, हमारी सरकारी की approach समय के साथ चलती है। भविष्य कीं आवश्यकताओं के हिसाब से व्यवस्थाओं में आवश्यक बदलाव किये हैं। हम वो पुरातन पंथी नहीं है, हम समय के साथ बदलने वाले लोग हैं। हम टेक्नोलॉजी को स्वीकार करने वाले लोग हैं। देश की, समाज की, समय की मांग के अनुसार व्यवस्थाएं विकसित करने के पक्ष में है। जीएसटी हो, आधार हो, डिजिटल इंडिया हो, ऐसे
अनेक प्रयासों की कड़ी में इंडिया पोस्ट पेमेन्ट्स बैंक भी अब जुड़ गया
है। हमारी सरकार पुरानी व्यवस्थाओं को अपने हाल पर छोड़ने वाली नहीं , बल्कि reform, perform और उन्हें transform करने का काम कर रही है। बदलती टेक्नोलॉजी के माध्यम से.. और माध्यम भी बदले हैं, भले बदले हो, लेकिन मकसद तो अब भी वही है। अंतरदेशीय पत्र या Inland Letter की जगह अब भले ई-मेल ने ले ली हो, लेकिन लक्ष्य दोनों का एक ही है। और इसलिए जिस टेक्नोलॉजी ने पोस्ट ऑफिस को चुनौती दी, क्योंकि लोगों को लग रहा था अब यह डाक विभाग रहेगा नहीं रहेगा, डाकिये रहेंगे नहीं रहेंगे, इनकी नौकरी रहेगी, नहीं रहेगी.. इनकी चर्चा चल रही थी। टेक्नोलॉजी ने जो चुनौती दी, उसी टेक्नोलॉजी को आधार बनाकर हम इस चुनौती को अवसर में बदलने के प्रति आगे बढ़ रहे हैं।
भारतीय डाक विभाग, देश
की वो व्यवस्था है जिसके पास डेढ़ लाख से अधिक डाक घर हैं। इनमें से भी
सवा लाख से अधिक सिर्फ गांव में ही है। तीन लाख से अधिक पोस्ट मेन और
ग्रामीण डाक सेवक,देश के जन-जन से जुड़े हुए हैं। इतने व्यापक नेटवर्क को टेक्नोलॉजी से जोड़ कर 21 वीं
सदी में सेवा का सबसे शक्तिशाली सिस्टम बनाने का बीड़ा हमारी सरकार ने
उठाया है। अब डाकिये के हाथ में स्मार्ट फोन है और उसके थैले में, उसके बैग में एक डिजिटल डिवाइस भी है। साथियों, एकता, समानता, समावेश सेवा और विश्वास का प्रतीक यह पोस्ट पेमेन्ट्स बैंक अब देश की बैंकिंग व्यवस्था को ही नहीं, बल्कि डिजिटल लेनदेन की व्यवस्था को भी विस्तार देने की ताकत रखता है। IPPB में बचत खाते के साथ-साथ, छोटे
से छोटा व्यापारी अपना काम चलाने के लिए चालू खाता भी खोल सकता है। यूपी
और बिहार का जो कामगार मुम्बई या बैंगलुरू में काम कर रहा है, वो
आसानी से पैसा अपने परिवार को भेज पाएगा। दूसरे बैंक खातों में पैसा भी वो
ट्रांसफर कर सकता है। सरकारी सहायता का पैसा मनरेगा की मजदूरी के लिए भी
इस खाते का उपयोग वो आसानी से कर सकता है। बिजली और फोन के बिल जमा करने के
लिए भी उसे कहीं और जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी, इतना
ही नहीं दूसरे बैंकों या वित्तीय संस्थानों के साथ साझेदारी कर पोस्ट
पेमेन्ट्स बैंक ऋण भी दे पाएगा। निवेश और बीमा जैसी सेवाएं भी अपने
ग्राहकों को पहुंचाएगा। सबसे अहम बात यह है कि सभी सेवाएं बैंक के काउंटर
के अतिरिक्त घर आकर डाकिये देने वाले हैं। बैंक से संवाद, डिजिटल लेन देने में जो भी मुश्किल अभी तक आती थी, उनका समाधान भी डाकिये के पास रहेगा। आपने कितने पैसे जमा किये थे, आपको कितना ब्याज मिला, कितने पैसे आपके खाते में बचे हैं यह सब अब घर बैठे-बैठे डाकिया बता देगा। यह सिर्फ एक बैंक नहीं है, बल्कि गांव, गरीब, मध्यम वर्ग का विश्वस्त सहयोगी सिद्ध होने वाला है।
अब आपको अपना खाता, अपने खाते का नंबर, याद रखने की, किसी
को पासवर्ड बताने की जरूरत नहीं है। ग्रामीण परिस्थितियों को देखते हुए इस
बैंक की सारी प्रक्रिया को बहुत ही आसान बनाया गया है। इस नये बैंक में
कुछ ही मिनटों में आपका खाता खुल जाएगा। और हमारे मंत्री जी कहते थे, ज्यादा से ज्यादा एक मिनट। इसके साथ ही खाता धारक को एक QR कार्ड दिया जाएगा, जो मुझे अभी दिया गया है, क्योंकि मेरा भी खाता खुल गया है। जो खाता नहीं है, वो भी खाता तो रखता ही है।
आपको हैरानी होगी हमारे जीवन में बैंक अकाउंट का कभी नाता नहीं आया, लेकिन जब स्कूल में पढ़ते थे तो देना बैंक की एक स्कीम थी, वो एक गुल्लक देते थे बच्चों को और एक अकाउंट खोलते थे, तो हमें भी दिया, लेकिन हमारा तो खाली रहा हमेशा। बाद में हम गांव छोड़कर चले गए, लेकिन बैंक अकाउंट खाता बना रहा और बैंक वालों को हर साल उसको carry forward करना पड़ता था। बैंक वाले मुझे ढूंढ रहे थे, खाता बंद करने के लिए। मेरा कोई अतापता नहीं था। करीब 32 साल के बाद उनको पता चला कि मैं कहीं आया हूं, तो बैंक वाले बिचारे वहां आये, बोले भाई signature कर दो हमें तुम्हारा खाता बंद करना है। खैर बाद में जब गुजरात में MLA बना तो तन्खाह आने लगा तो बैंक अकाउंट खोलना पड़ा, लेकिन उससे पहले कभी नाता ही नहीं आया और आज पोस्ट वालों ने एक और खाता खोल दिया।
देखिए डाकिया सिर्फ डाक पहुंचाता था, ऐसा नहीं है। जो परिवार पढ़े-लिखे नहीं होते थे, तो डाकिया बैठ करके, डाक खोल करके पूरी सुना करके जाता था, फिर वो बूढ़ी मां कहती थी कि बेटा वो बेटे को जवाब लिखना है तो कल तुम एक पोस्ट कार्ड ले आना और मैं जवाब बताऊंगी, तो दूसरे दिन वो डाकिया पोस्ट कार्ड भी ले करके आता था और वो मां लिखवाती थी, वो लिख देता था। यानी कैसी आत्मीय व्यवस्था, वही टेक्नोलॉजी का काम मेरा डाकिया फिर से एक बार करेगा। यानी एक QR कार्ड आपकी ऊंगली का निशान और डाकिये की जुबान, बैंकिंग को आसान और हर आशंका का समाधान करने वाली है। साथियों गांव में सबसे मजबूत नेटवर्क होने की वजह से IPPB किसानों के लिए भी एक बड़ी सुविधा सिद्ध होगा। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना जैसी योजनाओं को इससे विशेष बल मिलेगा। Claim कों समय पर settle करना हो या किसानों को इस स्कीम से जोड़ना हो निश्चित रूप से इस बैंक से लाभ होने वाला है। पोस्ट पेमेन्ट्स बैंक के बाद अब योजनाओं की claim राशि
भी घर बैठे ही मिला करेगी। इसके अलावा यह बैंक सुकन्या समृद्धि योजना के
तहत बेटियों के नाम पर पैसा बचाने की मुहिम को भी गति देगा ।
भाइयों और बहनों, हमारी सरकार देश के बैंकों को गरीब के दरवाजे पर ले करके आ गई है। वरना चार-पांच साल पहले तक तो ऐसी स्थिति थी और ऐसी स्थिति बना दी गई थी कि बैंकों का अधिकांश पैसा सिर्फ उन्हीं इने-गिने लोगों के लिए रिज़र्व रख दिया गया था जो किसी एक परिवार के करीबी हुआ करते थे। आप सोचिए आजादी के बाद से लेकर 2008 तक यानी 1947 से 2008 तक और देशभर के 20 लाख लोग सुन रहे हैं, सुन करके चौंक जाएंगे 1947 से 2008 तक हमारे देश की सभी बैंकों ने कुल मिला करके 18 लाख करोड़ रुपये की राशि ही लोन के तौर पर दी थी। 18 लाख करोड़, इतने सारे कालखंड में, लेकिन 2008 के बाद, सिर्फ छह साल में यानी 60 साल में क्या हुआ और छह साल में क्या हुआ? 60 साल में 18 लाख करोड़ और छह साल में यह राशि बढ़कर 52 लाख करोड़ रुपये हो गई। ले जाओ। बाद में मोदी आएगा, रोयेगा, ले जाओ। यानी जितना लोन देश के बैंकों ने आजादी के बाद दिया था उसको लगभग दोगुना लोन पिछले सरकार के छह साल में...तेरा भी भला, मेरा भी भला। और यह लोन मिलता कैसे था? हमारे देश में यह टेक्नोलॉजी तो अब आई, लेकिन उस समय एक special परंपरा चल रही थी, फोन बैंकिंग की। और उस फोन बैंकिंग का प्रसार उतना हुआ था। अनेक नामदर अगर फोन कर दे तो बैंकिंग और फोन पर कर्ज देने वाले बेड़ा पार...लोन मिल ही जाता था। जिस भी बड़े धनी, धन्ना सेठ को लोन चाहिए होता था, वो नामदरों से बैंक में फोन करवा देता था। बैंक वाले उस व्यक्ति या कंपनी को जड़ से अरबों-खरबों रुपयों का कर्ज दे देते थे। सारे नियम, सारे कायदा-कानून
से ऊपर था उन नामदारों का टेलिफोन। कांग्रेस और उसके नामदारों की फोन
बैंकिंग ने देश को बहुत नुकसान पहुंचाया। अब सवाल यह भी उठता है कि बैंकों
ने इस तरह की फोन बैंकिंग से मना क्यों नहीं किया। साथियों, आपको यह पता है कि उस समय बैंकों में नामदारों के आशीर्वाद से ही अधिकांश लोगों की नियुक्ति होती थी। नामदरों के प्रभाव की वजह से ही बैंक के बड़े-बड़े
दिग्गज भी लोन देने से मना नहीं कर पाते थे। छह साल में लगभग दोगुना लोन
देने के पीछे यही सबसे बड़ी वजह थी। बैंकों ने यह जानते हुए भी कि उनके
द्वारा दिये गये लोन की वापसी मुश्किल होगी, बस कुछ विशेष लोगों को लोन देना ही पड़ेगा। पता है नहीं आएगा, दो। इतना ही नहीं, जब ऐसे लोग कर्ज चुकाने में default करने लगे तो बैंकों में फिर से दबाव आया, उन्हें नये लोन दीजिए, और यह गोरखधंधा, यह चक्र लोन की restructuring के नाम पर हुआ। यानी एक बार लोन ले लिया फिर जहां पहुंचाना था, पहुंचा दिया। अब उसको फिर वो मांग रहा है कि दूसरा दो, तो मैं देता हूं। वो देता हे, यह देता है, यह देता है, यह देता है। वो ही चक्र चलता था। जो लोग इस गोरखधंधे में लगे थे, उन्हें भी अच्छी तरह पता था कि एक न एक दिन उनकी पोल जरूर खुलेगी और इसलिए उसी समय से हेरा-फेरी की एक और साजिश साथ-साथ रची गई, बैंकों का दिया कितना कर्ज वापस नहीं आ पा रहा, इसके सही आंकड़े देश से छिपाये गए। देश को अंधेरे में रखा गया। यानी जो लाखों-करोड़ों रुपये फंसे थे उसे कागजों पर सही तरीके से नहीं बताया गया, छुपाया गया। देश से झूठ बोला गया कि सिर्फ दो लाख करोड़ रुपये है, जो आना बाकी है और शक है कि आएंगे या नहीं आएंगे। जिस समय देश में बड़े-बड़े घोटाले उजागर हो रहे थे, उस
समय पिछली सरकार ने सारी मेहनत अपने यह सबसे बड़े घोटाले को छिपाने में
लगाई हुई थी। बैंकों में कुछ खास लोग भी इसमें नामदारों की जरा मदद कर रहे
थे।
2014 में जब हमारी सरकार बनी तो सारी सच्चाई सामने आने लगी, तब बैंकों से कड़ाई से कहा गया कि सही-सही आकलन करके उनकी कितनी राशि, इस तरह का लेनदेन और उनका लोन देना बाकी है, कितने रुपये फंसे हुए हैं, सारी जानकारी लाओ। छह साल में जो राशि दी गई उसकी सच्चाई यह है कि जिस राशि को पिछली सरकार सिर्फ दो-ढ़ाई लाख करोड़ बता रही थी, वो दरअसल नौ लाख करोड़ रुपया थी। चौंक जाएगा आज देश सुन करके, देश के साथ कितना धोखा किया गया। देश के सामने कितना झूठ बोला गया। हर रोज़ ब्याज की रकम जुड़ने की वजह से यह दिनों-दिन और बढ़ती जा रही है। आने वाले दिनों में यह और बढ़ेगा, क्योंकि ब्याज तो जुड़ना ही जुड़ना है, बैंक तो अपना कागजी काम तो करेगा ही करेगा।
साथियों, 2014 में सरकार बनने के कुछ समय बाद ही हमें एहसास हो गया था कि कांग्रेस का और यह नामदार देश की अर्थव्यवस्था को एक ऐसी land mine बिछा
करके गया है। अगर उसी समय देश और दुनिया के सामने इसकी सच्चाई रख दी जाती
तो ऐसा विस्फोट होता कि अर्थव्यवस्था शायद संभालना मुश्किल हो जाता।
इतनी बर्बादी कर रखी थी। इसलिए बहुत ऐहतियात के साथ, बड़ी बरीकी के साथ काम करते-करते इस संकट से देश को बाहर निकालने के लिए हम दिन-रात लगे रहे।
भाइयों और बहनों, हमारी यह सरकार, एनपीए की सच्चाई, पिछली सरकार के घोटले को देश के सामने ले करके आई है। हमने केवल बीमारी का पता ही नहीं लगाया, बल्कि उसके कारण की भी तलाश की और उस बीमारी को दुरस्त करने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम भी उठाए हैं। पिछले साढ़े चार साल में 50 करोड़ से बड़े सभी लोन की समीक्षा की गई। लोन की शर्तों का बड़ी कड़ाई से पालन हो, यह सुनिश्चित किया जा रहा है। हमने कानून बदलें। बैंकों के मर्जर का निर्णय लिया, बैंकिंग सेक्टर में professional approach को बढ़ावा दिया। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को सुधारने के लिए निरंतर सुधार किये जा रहे हैं। Fugitive Economic Offenders Bill, भगोड़ों की संपत्ति जब्त करने की कार्रवाई शुरू हो चुकी है। यह भगोड़े अपनी संपत्ति में खुद भाग न ले सके, इसकी भी व्यवस्था की गई है। बडे़ लोन लेने वालों के पासपोर्ट detail भी अब सरकार के कब्जे में रखना तय कर लिया है, ताकि देश छोड़ करके भागना उनके लिए आसान न हो। Bankruptcy कोड और एनसीएलटी द्वारा NPA कीrecovery शुरू हुई है। 12 सबसे बड़े defaulters, जिनको 2014 के पहले लोन दिया था, जिसकी NPA की राशि करीब-करीब पौने दो लाख करोड़ रुपये है उनके खिलाफ तेज गति से कार्रवाई चल रही है। अब उसके नतीजे भी दिखने लगे हैं। इसी प्रकार उन 12 के अलावा और दूसरे 27, वो भी बड़े-बड़े लोन खाते वाले हैं, जिनमें लगभग एक लाख करोड़ रुपये का एनपीए है।
इनकी वापसी का भी इंतजाम बहुत पक्के तरीके से हो रहा है। जिनको लग रहा था
कि नामदारों की सहभागिता और मेहरबानी से उनको मिले लाखों-करोड़ों रुपया हमेशा-हमेशा के लिए उनके पास रहेंगे, हमेशा incoming ही रहेगा, अब उनके खाते से outgoing भी शुरू हुआ है। देश में एक नया बदलाव आया है। अब एक नया culture आया है, culture बदल रहा है। पहले बैंक इनके पीछे पड़ते थे। अब हमने कानून की जाल ऐसी बनाई है कि अब वो re-payment करने के लिए चक्कर काट रहे हैं। कुछ करो भाई, थोड़ा ले लो, थोड़ा अगले महीने दे दूंगा, कोई बचा लो मुझे। अब यह खुद बैंक के पीछे दौड़ने लगे हैं। पैसा वापस करने के लिए मजबूर हो रहे हैं। दिनों-दिन
मजबूत होती बैंकिंग व्यवस्था के साथ ही अब ऐसे लोगों पर जांच एजेंसियां
का शिकंजा और कसने जा रहा है और मैं देश को फिर आश्वस्त करना चाहता हूं
कि इन सारे बड़े लोनों में से एक भी लोन इस सरकार का दिया हुआ नहीं है।
हमने तो आने के बाद बैंकों की दिशा और दशा दोनों में निरंतर बदलाव किया है।
और आज का यह आयोजन भी उसी का एक महत्वपूर्ण कदम है। पहले नामदारों के
आशीर्वाद से यह बड़े लोगों ही कर्ज मिलता था। अब देश के गरीब को बैंक से
कर्ज मिलना हमारे डाकिये के हाथ में आ गया।
पिछले चार साल में मुद्रा योजना के माध्यम से 13 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्ज स्वरोजगार के लिए देश के गरीब और मध्यम वर्ग के नौजवानों को दिया गया है। 32 करोड़ से ज्यादा गरीबों के जनधन अकाउंट खोले गए हैं। 21 करोड़ से ज्यादा गरीबों को सिर्फ एक रुपया, महीने का एक रुपया और 90 पैसे प्रति दिन के प्रीमियम पर बीमा और पेंशन का सुरक्षा कवच भी देने का काम हमारी सरकार ने किया है।
भाइयों और बहनों, देश की अर्थव्यवस्था को जिस land mine पर नामदारों ने बिठाया था, उस landmine को हमारी सरकार ने निष्कर्य कर दिया है। देश आज एक नये आत्मविश्वास से भरा हुआ है। एक तरफ इस एशियन गेम्स में भारत ने अपनी best ever performance दिखाई, हमारे खिलाडि़यों ने, तो दूसरे तरफ कल देश को अर्थव्यवस्था के आंकड़ों से भी एक नया मेडल मिला है। जो आंकड़े आए हैं, वो देश की मजबूत होती अर्थव्यवस्था और उसमें आते आत्मविश्वास के प्रमाण हैं। 8.2 percent की दर से हो रहा विकास, भारत
की अर्थव्यवस्था की बढ़ती हुई ताकत को दिखाता है। एक नये भारत की
उज्जवल तस्वीर को सामने लाता है। यह आंकड़े न सिर्फ अच्छे हैं, बल्कि सभी जो expert लोग हैं, अनुमान लगाते थे, उससे भी ज्यादा अधिक है। जब देश सही दिशा में चलता है और नीयत साफ होती है, तो ऐसे ही सकारात्मक परिणाम देखने को मिलते हैं। साथियों यह मुमकिन हुआ है सवा सौ करोड़ देशवासियों की मेहनत से, लगन और commitment के कारण। हमारे युवाओं, हमारी महिलाएं, हमारे किसान, हमारे उद्यमी, हमारे मजदूर, यह हम सबका, उन सबके पुरूषार्थ का परिणाम है कि देश आज तेज गति से आगे बढ़ रहा है।
आज भारत न सिर्फ देश की सबसे तेज गति से आगे बढ़ने वाले अर्थव्यवस्था है, बल्कि
सबसे तेजी से गरीबी मिटाने वाला देश भी बना है। जीडीपी के आंकड़े गवां है
कि नया भारत अपने सामर्थ्य के बूते सवा सौ करोड़ भारतीयों के संघर्ष और
समर्पण के दम पर आगे बढ़ रहा है। मैं देश को फिर कहना चाहूंगा कि बैंकों का
जितना भी पैसा नामदारों ने फंसाया था, उसका एक-एक
रुपया वापस ले करके ही रहने वाले हैं। उससे देश के गरीब से गरीब व्यक्ति
को सशक्त करने का काम किया जाएगा। इंडिया पोस् पेमेन्ट्स बैंक भी इसमें
बहुत अहम भूमिका निभाएगा। IPPB और पोस्ट ऑफिस के माध्यम से बैंकिंग, बीमा सामाजिक सुरक्षा की योजनाएं, direct benefit transfer, passport सेवा, online shoping जैसी अनेक सुविधाएं गांव-गांव, घर-घर और प्रभावी तरीके से पहुंचने वाली है। यानी 'सबका साथ, सबका विकास' रास्ते को हमारा डाकिया, इंडिया
पोस्ट पेमेंट बैंक और सशक्त करने के लिए अब एक नये रूप में देश के सामने
प्रस्तुत हो रहा है। मुझे खुशी है कि इस विराट मिशन को गांव-गांव, घर-घर तक, किसान तक, छोटे व्यापारियों तक पहुंचाने के लिए देश के तीन लाख डाक सेवक कटिबद्ध हो करके तैयार हैं। डाक सेवक लोगों को डिजिटल लेन-देन में न केवल सहयोग करेंगे, बल्कि उन्हें ट्रेनिंग भी देंगे, ताकि भविष्य में वो अपने फोन से खुद बैंकिंग और डिजिटल transaction कर सकें। इस तरह हमारे डाक बाबू न सिर्फ बैंकर होंगे, बल्कि
देश के डिजिटल टीचर भी बनने वाले हैं। देश की सेवा करने वालों की इस
भूमिका को देखते हुए बीते महीनों में सरकार ने भी कई अहम फैसले लिये हैं।
सरकार ने जुलाई में ही ग्रामीण डाक सेवकों के वेतन और भत्तों से जुड़ी
पुरानी मांग को पूरा किया है। इसका लाभ देश के ढ़ाई लाख से ज्यादा ग्रामीण
डाक सेवकों को मिलना सुनिश्चित हुआ है। पहले उन्हें जो समय संबंधी भत्ता
मिलता था, उसमें
दर्जन भर स्लैब होती थी। अब इसे भी घटाकर सिर्फ तीन कर दिया गया है। इसके
अलावा उन्हें जो भत्ता दो से चार हजार के बीच मिलता था, उसे बढ़ाकर 10 हजार से 14 हजार रुपये कर दिया गया है। वो जिस मुश्किल परिस्थिति में काम करते हैं, उसे देखते हुए एक नये भत्ते की भी शुरूआत की गई है। जो महिला ग्राम डाक सेवक हैं, उन्हें पूरे वेतन के साथ 180 दिन यानी छह महीने के मातृत्व अवकाश की भी व्यवस्था की गई है। सरकार के प्रयासों की वजह से ग्रामीण डाक सेवक के वेतन में औसतन 50 प्रतिशत
से ज्यादा की वृद्धि हुई है। मुझे बताया गया है कि डाक सेवक के रिक्त
पदों में भर्ती के लिए ऑनलाइन भर्ती प्रक्रिया भी शुरू की जा चुकी है। यह
फैसले इंडिया पोस्ट पेमेन्ट्स बैंक के हमारे सबसे मजबूत प्रतिनिधि को और
मजबूत करने में सहायक सिद्ध होगी।
साथियों, आज
देश के तीन हजार से अधिक स्थानों पर यह सेवा शुरू हो रही और जैसे हमारे
मनोज सिन्हा जी बता रहे थे कि आने वाले कुछ ही महीनों में डेढ़ लाख से
अधिक पोस्ट ऑफिस इस सुविधा से जुड़ जाएंगे। New India की इस नयी व्यवस्था को देश के मजबूत telecom infrastructurfe से भी मदद मिलेगी। देशवासियों को इस नई व्यवस्था के लिए, नये बैंक के लिए, नई सुविधा के लिए बहुत-बहुत बधाई के साथ मैं फिर एक बार डाक के सेवा क्षेत्र में जुड़े हुए हमारे सभी साथियों को सम्मान करते हुए, उनका आदर करते हुए मैं अपनी बात को विराम देता हूं। Postal Department के हर कर्मचारी, इस बैंक से जुड़े हर व्यक्ति को मैं पुन: बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं। बहुत-बहुत धन्यवाद देता हूं, और मनोज सिन्हा जी को बहुत बधाई देता हूं, क्योंकि उनका आईआईटी को backgroundइस काम में मुझे बहुत मदद की। टेक्नोलॉजी ने भरपूर मदद की है। और इसके लिए मंत्री जी को भी नेतृत्व देने के लिए बहुत-बहुत बधाई देता हूं। धन्यवाद।
अतुल कुमार तिवारी / कंचन पतियाल / तारा
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