मैं जानता हूँ कि जब मैने आज रात को 9 बजे बाल्कनी में आकर दिया जलाया, तो .....
उससे ये वायरस नहीं मरा, पर वो तो जब मैं अंदर सोफे पर बैठकर नेटफ्लिक्स देख रहा होता था, तो उससे भी नहीं मरा था।
मैं जानता हूँ कि मेरे बाल्कनी में दिया जलाने से देश में हॉस्पिटल की संख्या नहीं बढ़ जाएगी, पर वो तो मेरे बेड पर लेटकर सरकार को गाली देने से भी नहीं बढ़ेगी।
मैं जानता हूँ कि, मेरे बाल्कनी में दिया जलाने से बाहर ड्यूटी कर रहे लोगो को सुरक्षा वाले इक्विपमेंट नहीं मिल जाएंगे, पर वो तो मेरे रोज डाइनिंग टेबल पर बैठ कर केएफसी और डोमिनोज़ को मिस करने से भी नहीं मिलेते।
मैं जानता हूँ कि मेरे बाल्कनी में दिया जलाने से देश को पैसा नहीं मिल जाएगा, पर वो तो मेरा रोज अपने लैपटॉप के सामने बैठकर सिर्फ अपनी सैलरी के बारे में सोचने से भी नहीं बढ़ेगा।
फिर क्या हुआ, इन लम्हों से....
इन चंद लम्हों से बाल्कनी में आए हर बच्चे, हर बूढ़े, हारे हुए इंसान को एक हिम्मत मिली कि......
"जंग अभी जारी है, अब जीत की बारी है"
हर बाहर ड्यूटी करते हुए सिपाही, हर डॉक्टर, हर कर्मचारी का जोश बढ़ेगा कि, जान बेशक हथेली पर लेकर वो बाहर है, लेकिन अंदर बैठा हर शख्स हर पल उनके लिए दुआ कर रहा है।
भारत से छोटे और भारत से बड़े, हर उस देश को हिम्मत और ताकत मिलेगी की एक ऐसा देश जिसकी जनसंख्या सबसे ज्यादा, हॉस्पिटल और बाकी सुविधाएं सबसे कम, लेकिन उस देश का हर नागरिक खड़ा है आज कंधे से कंधा मिलाकर, उस अनदेखी मौत के सामने और उसको चुन्नौती दे रहा है।
कि, हम तुझको हराएंगे, हम दूर है पर आज भी एक है और अगर मौत आखिरी मंजिल है तो, तेरा स्वागत है, हम सब साथ है I
और उस जलते प्रकाश से हमारी अंतरात्मा को पता चलेगा की, बेशक आज अंधेरा घना है लेकिन, प्रकाश का आना तय है और ये छोटा सा प्रकाश उस अनदेखी ताकत को बता रहा है की मैं आकर रहूंगा I
विज्ञान बोलता है कि हमारी इम्यूनिटी ही एक मात्र चीज है, जो इसको हरा सकती है और कौन कहेगा कि एक हंसते हुए इंसान की इम्यूनिटी पहले से हार मान चुके इंसान से ज्यादा नहीं होगी।
ये हिम्मत ही है जो, लाइलाज को भी वापस जीवन की पटरी पर ले आई है और आज यही हिम्मत तो एक दूसरे को देनी है बस, इतना सा ही तो करना है।
मैने भी दिया जलाया,
बहुतों ने साथ दिया,
कुछेक ने इसका परिहास उड़ाया।
लेकिन, फिर भी......
गिला किसी से नहीं... 🎉💐🙏
No comments:
Post a Comment