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नई दिल्ली। सोशल मीडिया पर नेट न्यूट्रैलिटी
यानी नेट की आजादी के लिए चलाई जा रही मुहिम रंग लाई है। इंटरनेट यूजर्स
की नाराजगी को देखते हुए ई-कॉमर्स कंपनी फ्लिपकार्ट ने एयरटेल जीरो से
नाता तोड़ लिया है। सोशल मीडिया पर विरोध को देखते हुए नेट न्यूट्रैलिटी के
सपोर्ट में फ्लिपकार्ट ने यह कदम उठाया है। बता दें कि पिछले दिनों
फ्लिपकार्ट ने भारती एयरटेल के साथ एक खास डील की थी। इसके तहत एयरटेल जीरो
प्लेटफॉर्म पर फ्लिपकार्ट के ऐप को खास अहमियत का प्रावधान था। इस डील को
नेट न्यूट्रैलिटी के नियम का उल्लंघन माना जा रहा है।
फ्लिपकार्ट ने जारी किया बयान
फ्लिपकार्ट ने कहा कि हम नेट न्यूट्रैलिटी के कॉन्सेप्ट को पूरी
तरह से मानते हैं क्योंकि इंटरनेट के कारण ही हमारी पहचान है। पिछले कुछ
दिनों से जीरो रेटिंग पर आंतरिक और बाहरी रूप से बहस छिड़ी हुई है। हम
इसे मानते हुए कुछ चीजों को लागू कर रहे हैं। कंपनी ने कहा कि हम एयरटेल
के नए प्लेटफॉर्म ‘एयरटेल जीरो’ पर नहीं जाएंगे। इसे लेकर एयरटेल के साथ
हुए करार को हम तोड़ रहे हैं। हम भारत में नेट न्यूट्रैलिटी के प्रति अपनी
प्रतिबद्धता जताते हैं।
क्या है विवाद की वजह
हाल ही में निजी क्षेत्र की सबसे बड़ी दूरसंचार कंपनी भारती एयरटेल ने
‘एयरटेल जीरो’ प्लान लांच किया है। यह एक ओपन मार्केटिंग प्लेटफॉर्म है,
जो ग्राहकों को कई मोबाइल
एप्लीकेशन मुफ्त में इस्तेमाल करने की सुविधा देता है। इसके डाटा चार्ज
का भुगतान स्टार्ट-अप्स और बड़ी कंपनियां करेंगी। इस तरह की गतिविधियों
से नेट न्यूट्रैलिटी को लेकर सवाल उठ रहे हैं। वहीं, कुछ महीने पहले
रिलायंस कम्युनिकेशंस और यूनिनॉर जैसी कंपनियों ने फेसबुक,
वॉट्सऐप एवं विकीपीडिया जैसी इंटरनेट कंपनियों के साथ ग्राहकों को मुफ्त
में ऐप्लीकेशन के इस्तेमाल करने के लिए करार किया है। उनके इस तरह के कदम
को नेट न्यूट्रैलिटी के खिलाफ बताया जा रहा है। इसीलिए बहुत से लोग इसका
विरोध कर रहे हैं और उनका कहना है कि इस सेवा के जरिए केवल कुछ ऐप्स को
ऐक्सेस करने की अनुमति देकर नेट न्यूट्रैलिटी के सिद्धांत का उल्लंघन
किया जा रहा है।
क्या है ‘नेट न्यूट्रैलिटी’
जब कोई भी व्यक्ति किसी ऑपरेटर से डाटा पैक लेता है तो उसका अधिकार
होता है कि वो नेट सर्फ करे या फिर स्काइप, वाइबर पर वॉइस या वीडियो कॉल
करे, जिस पर एक ही दर से शुल्क लगता है। ये शुल्क इस बात पर निर्भर करता है
कि उस व्यक्ति ने उस दौरान कितना डाटा इस्तेमाल किया है। यही नेट
न्यूट्रैलिटी कहलाती है। सरल भाषा में कहें तो आप बिजली का बिल देते हैं और
बिजली इस्तेमाल करते हैं। ये बिजली आप कम्प्यूटर चलाने में खर्च कर रहे
हैं, फ्रिज चलाने में या टीवी चलाने में, इससे बिजली कंपनी का कोई
लेना-देना नहीं होता। कंपनी ये नहीं कह सकती कि अगर आप टीवी चलाएंगे तो
बिजली के रेट अलग होंगे और फ्रिज चलाएंगे तो अलग। लेकिन अगर नेट
न्यूट्रैलिटी खत्म हुई तो इंटरनेट डाटा के मामले में आपको हर सुविधा के लिए
अलग से भुगतान करना पड़ सकता है। इससे कंपनियों को तो फायदा होगा, लेकिन
आम जनता के लिए इंटरनेट काफी महंगा हो जाएगा।
कंपनियां क्यों परेशान
टेलिकॉम कंपनियां इस बात से परेशान हैं कि नई तकनीक ने उनके कारोबार
के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी हैं, जैसे वॉट्सऐप के मुफ्त ऐप ने एसएमएस सेवा
को लगभग खत्म ही कर डाला है, इसलिए कंपनियां ऐसी सेवाओं के लिए ज्यादा रेट
वसूलने की कोशिश में हैं, जो उनके कारोबार और राजस्व को नुकसान पहुंचा रही
हैं। हालांकि, इंटरनेट सर्फिंग जैसी सेवाएं कम रेट पर ही दी जा रही हैं।
सरकार एक माह में देगी नेट न्यूट्रैलिटी पर रिपोर्ट
देश में नेट न्यूट्रैलिटी पर बढ़ती बहस के बीच सरकार ने सोमवार को कहा
है कि उसने नेट न्यूट्रैलिटी के लिए एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया है।
सरकार ने कहा कि यह समिति एक माह के भीतर अपनी रिपोर्ट दे देगी।
दूरसंचार मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि टेलीकॉम सेक्टर का
रेगूलेटर ट्राई भी इस मुद्दे पर सभी प्रतिभागियों से बातचीत कर रहा है और
इसकी रिपोर्ट अभी आना बाकी है।
एयरटेल, फेसबुक, आरकॉम की योजनाओं के विरोध में Start-ups
स्टार्ट-अप आईटी कंपनियां भी एयरटेल, आरकॉम और फेसबुक जैसी कंपनियों
की इस योजना के खिलाफ खुलकर विरोध में उतर आई हैं। सीडफंड के प्रबंधकीय
साझेदार महेश मूर्ति के मुताबिक, ‘ऐसी योजनाएं विशेषकर स्टार्ट-अप्स के लिए
नुकसानदेह हैं, जिन्हें इनके लागू होने की स्थिति में अपने ऐप्स की पेशकश
करने के एवज में संबंधित प्लेटफॉर्म को शुल्क का भुगतान करना होगा। साथ ही
इससे इस बाजार पर कुछ बड़ी कंपनियों का एकाधिकार हो जाएगा और छोटी कंपनिया
प्रतिस्पर्धा से बाहर हो जाएंगी।’
उन्होंने बैंडविथ को राष्ट्रीय संसाधन बताते हुए कहा, ‘सरकार ने
सेवाओं की पेशकश के लिए कंपनियों को लाइसेंस जारी किए हैं, इसलिए इनका
दुरुपयोग नहीं होना चाहिए। इंटरनेट एक ऐसी सेवा है, जो सभी को समान रूप से
उपलब्ध होनी चाहिए।’
एक अग्रणी निवेशक और ऑनलाइन परीक्षा की तैयारी कराने वाली साइट टॉपर
डॉट कॉम के सह संस्थापक जीशान हयात ने भी इस पर विरोध जाहिर करते हुए कहा
कि इंटरनेट पर सूचनाओं और सेवाओं का इस्तेमाल के लिए सभी को समान अवसर
मिलने चाहिए।
कांग्रेस भी नेट न्यूट्रैलिटी के समर्थन में
नेट न्यूट्रैलिटी का मुद्दा अब राजनीतिक रंग लेने लगा है। कांग्रेस
पार्टी भी अब इसके समर्थन में आ गई है। कांग्रेस प्रवक्ता अजय माकन ने
बाकायदा प्रेसवार्ता कर इंटरनेट की स्वतंत्रता की जोरदार वकालत की। माकन ने
कहा कि हम सरकार से ट्राई द्वारा की जा रही इस कवायद को ठंडे बस्ते में
डालने के निर्देश देने और इंटरनेट की स्वतंत्रता को समर्थन देने की अपील
करते हैं। माकन ने कहा कि यह प्रस्ताव बेहद खतरनाक है और किसी भी साइट से
भेदभावपूर्ण व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए।
यहां बताना जरूरी है कि इस मसले पर ट्राई के परामर्श पत्र को लगभग 1.5
लाख ईमेल के माध्यम से प्रतिक्रिया मिली, जो दूरसंचार नियामक के किसी
परामर्श पत्र के लिहाज से सबसे बड़ा आंकड़ा है। सत्ता पक्ष हो या विपक्ष
सभी राजनीतिक दल भी अब इस मुद्दे पर जनता की भावना को समझने लगे हैं और
नेट्र न्यूट्रैलिटी के पक्ष में आवाज उठा रहे हैं।